एक गरीब मोची का सपना: कैसे बना BATA, 18,000 करोड़ की कंपनी

आज से लगभग 130 साल पहले, चेक रिपब्लिक (Czech Republic) के एक छोटे से गांव में 18 साल के एक युवा, थॉमस बाटा (Thomas Bata), ने जूतों से भरी अलमारी के सामने एक बड़ा सपना देखा। यह सपना सिर्फ एक दुकान (shop) तक सीमित नहीं था, बल्कि हर गरीब इंसान को जूते पहनाने की उनकी ख्वाहिश थी। उस दौर में जूते इतने महंगे थे कि आम लोग उन्हें खरीद ही नहीं पाते थे। थॉमस का सपना था कि वह ऐसे जूते बनाए, जो सस्ते (affordable) और टिकाऊ (durable) हों।

यही वो शुरुआत थी, जिसने बाटा को एक ग्लोबल ब्रांड (global brand) बना दिया। आज भारत (India) में बाटा फुटवेयर इंडस्ट्री (footwear industry) का लीडर है, जिसके पास 15% मार्केट शेयर (market share) है। भारत के 2,000 से ज्यादा स्टोर्स (stores) के साथ, बाटा हर दिन लाखों ग्राहकों (customers) को सर्व करता है।

शुरुआत: जब सपना साकार हुआ

1894 में थॉमस बाटा ने अपने भाई और बहन के साथ मिलकर एक छोटी सी वर्कशॉप (workshop) में जूते बनाने का काम शुरू किया। उनका मकसद था, कम दाम में अच्छे जूते (shoes) बनाना। शुरुआत में यह बिजनेस (business) छोटे स्तर पर था, लेकिन कुछ ही समय में इसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

यूरोप (Europe) में चीनी जूतों (Chinese shoes) की बढ़ती लोकप्रियता और फंड्स (funds) की कमी ने कंपनी को आर्थिक संकट (financial crisis) में डाल दिया। हालत इतनी खराब हो गई कि कंपनी बंद होने की कगार पर थी।

मास प्रोडक्शन से मिली नई दिशा

थॉमस बाटा ने हार नहीं मानी। उन्होंने अमेरिका (America) जाकर वहां की फैक्ट्रियों में मास प्रोडक्शन (mass production) और मशीनरी (machinery) का उपयोग करना सीखा। यह तकनीक उनके लिए गेम-चेंजर (game-changer) साबित हुई। अमेरिका में कमाए हुए पैसे से उन्होंने अपने बिजनेस को नए सिरे से खड़ा किया।

उन्होंने जूतों की प्रोडक्शन कॉस्ट (production cost) इतनी कम कर दी कि बाटा के जूते सस्ते और टिकाऊ होने के कारण लोगों की पहली पसंद बन गए।

भारत में एंट्री: एक नई कहानी की शुरुआत

1920 के दशक में थॉमस बाटा पहली बार भारत आए। उन्होंने देखा कि यहां अधिकतर लोग नंगे पांव चलते थे। उन्हें यह महसूस हुआ कि भारत में सस्ते जूतों की भारी जरूरत है। 1931 में उन्होंने पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कोन नगर (Konnagar) में किराए की एक बिल्डिंग (building) में पहली फैक्ट्री (factory) शुरू की।

हालांकि भारतीय मार्केट (Indian market) यूरोपीय मार्केट से बिल्कुल अलग था। यहां का मौसम, लोगों की खर्च करने की क्षमता और फैशन प्रेफरेंसेज (fashion preferences) सब कुछ एक नया चैलेंज था। थॉमस बाटा ने इंडियन मार्केट की गहराई से रिसर्च (research) की।

दुखद घटना और नई लीडरशिप

1932 में थॉमस बाटा की एक प्लेन क्रैश (plane crash) में मौत हो गई। इस घटना के बाद कंपनी की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई जैन एंटोनी बाटा (Jan Antonin Bata) और बेटे थॉमस बाटा जूनियर (Thomas Bata Jr.) पर आ गई।

थॉमस जूनियर ने युवा उम्र में ही अपने पिता के विजन (vision) को आगे बढ़ाया। 1934 में उन्होंने बाटा नगर (Batanagar) की स्थापना की। यह सिर्फ एक फैक्ट्री नहीं बल्कि एक पूरी टाउनशिप (township) थी, जहां वर्कर्स के लिए घर, स्कूल और हॉस्पिटल्स (hospitals) की व्यवस्था की गई।

मार्केटिंग स्ट्रेटेजी जो गेम-चेंजर बनी

बाटा ने भारतीय ग्राहकों को समझने के लिए नई रणनीतियां (strategies) अपनाईं। उन्होंने चार्म प्राइसिंग (charm pricing) का इस्तेमाल किया, जैसे ₹10 की बजाय ₹9.99। इसने ग्राहकों की बाइंग साइकोलॉजी (buying psychology) पर बड़ा असर डाला।

इसके अलावा, उन्होंने “टिटनेस से सावधान रहें” जैसे स्लोगन (slogan) के जरिए लोगों को जूते पहनने के फायदे बताए। इससे ग्राहकों के साथ एक इमोशनल कनेक्ट (emotional connect) बना।

स्कूल शूज और डोमिनेंस

बाटा ने स्कूल शूज (school shoes) को पॉपुलर बनाया। उनके सफेद और काले कैनवास शूज (canvas shoes) भारतीय स्कूलों में एक स्टैंडर्ड (standard) बन गए। 1961 तक बाटा हर दिन 50,000 जूते बना रहा था।

चुनौती भरा दौर: 1990 का दशक

1990 के बाद जब भारतीय इकॉनमी (economy) लिबरलाइज हुई, तो ग्लोबल ब्रांड्स (global brands) जैसे नाइकी (Nike) और एडिडास (Adidas) भारतीय मार्केट में आ गए। साथ ही पैरागन (Paragon) और लिबर्टी (Liberty) जैसे लोकल प्लेयर्स (local players) ने भी बाटा को कड़ी टक्कर दी।

Poor Mochi built BATA

बाटा ने प्रोडक्शन कॉस्ट कम करने के लिए कुछ प्रोडक्ट्स को आउटसोर्स (outsource) करना शुरू किया। इससे उनकी क्वालिटी (quality) पर असर पड़ा और ग्राहक (customers) धीरे-धीरे दूसरे ब्रांड्स की तरफ शिफ्ट होने लगे।

ट्रांसफॉर्मेशन और कमबैक

2000 के दशक में बाटा ने अपनी इमेज (image) बदलने का फैसला किया। उन्होंने अपने आउटडेटेड स्टोर्स (outdated stores) को मॉडर्न और अट्रैक्टिव बनाया। नई प्रोडक्ट लाइन (product line) में स्टाइलिश और ट्रेंडी डिजाइन्स (trendy designs) जोड़े गए।

बाटा ने महिलाओं और युवाओं के लिए एक्सक्लूसिव कलेक्शन (exclusive collection) लॉन्च किया। उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स (digital platforms) पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और अमेजन (Amazon) और फ्लिपकार्ट (Flipkart) पर अपने प्रोडक्ट्स बेचना शुरू किया।

आज का बाटा: एक ग्लोबल पावरहाउस

आज बाटा ग्लोबली 70 से ज्यादा देशों में ऑपरेट (operate) कर रहा है। इसके 5,000 से ज्यादा स्टोर्स हर साल लाखों ग्राहकों को सर्व करते हैं। बाटा ने दिखा दिया कि समय के साथ खुद को बदलना ही सफलता की कुंजी (key to success) है।

बाटा की कहानी हमें सिखाती है कि सही सोच, कड़ी मेहनत और ग्राहकों को समझने का जुनून किसी भी छोटे से बिजनेस को एक ग्लोबल ब्रांड में बदल सकता है।

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